The Ultimate Guide To Shodashi
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॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥
सा नित्यं रोगशान्त्यै प्रभवतु ललिताधीश्वरी चित्प्रकाशा ॥८॥
While the precise intention or importance of the variation may fluctuate based on private or cultural interpretations, it can normally be recognized as an prolonged invocation of the merged Vitality of Lalita Tripurasundari.
प्राण प्रतिष्ठा में शीशा टूटना – क्या चमत्कार है ? शास्त्र क्या कहता है ?
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१२॥
अष्टारे पुर-सिद्धया विलसितं रोग-प्रणाशे शुभे
The path to enlightenment is commonly depicted as an allegorical journey, Along with the Goddess serving since the emblem of supreme power and Electricity that propels the seeker from darkness to gentle.
सा नित्यं नादरूपा त्रिभुवनजननी मोदमाविष्करोतु ॥२॥
Devotees of Shodashi interact in different spiritual disciplines that purpose to harmonize the brain and senses, aligning them with the divine consciousness. The next details outline the progression in the direction of Moksha by way of devotion to Shodashi:
कर्तुं मूकमनर्गल-स्रवदित-द्राक्षादि-वाग्-वैभवं
हंसोऽहंमन्त्रराज्ञी हरिहयवरदा हादिमन्त्रार्थरूपा ।
The whole world, as being a manifestation of Shiva's consciousness, holds The true secret to liberation when one realizes this essential unity.
कर्तुं देवि ! जगद्-विलास-विधिना सृष्टेन ते मायया
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के click here स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।